Tuesday, May 09, 2006

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Updated On : 6 March 2009

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1 comment:

  1. Anonymous7:41 PM

    रविशंकर जी,

    मेरी बातों का बुरा मत मानियेगा, पर मुझे आप का यह सुझाव बिल्कुल भी पसन्द नहीं आया.

    मैं भी छ्त्तीसगढ में पला बढा हूँ, और शायद आप से ज्यादा ही इस जगह से प्यार करता हूँ.

    मुझे छ्त्तीसगढिया भी बहुत अच्छी तरह से आती है. "मोला छ्त्तीसगढिया आथे गा ..."

    पर सच तो यही है की क्षेत्रीय भाषायें भारत को बांटने के अलावा और कुछ नहीं करतीं.

    ऐसा कौन होगा छ्त्तीगढ में, जो हिन्दी पढना अथवा बोलना नहीं जानता होगा.

    सच तो यह है की अभी लोगों को हिन्दी में इंटरनेट पर नहीं के बराबर सामग्री मिलती है.

    हिन्दी, जो देश की राष्ट्रीय भाषा है, उसमे काम करने की जगह लोग अपने क्षेत्रीय भाषाओं की और दौङने लग जाते हैं.

    मैं इतने कङवे वचन इस लिये बोल रहा हूँ क्यों की मैं भी आप ही की तरह छ्त्तीसगढिया बोल लेता हूँ, और मुझे भी मालूम है की छ्त्तीसगढ के लोगों की जरूरत क्या है.

    इस समय लोगों को अपनी ताकत क्षेत्रीय भाषाओं पर व्यर्थ करने की जगह हिन्दी पर ही अपना ध्यान लगाना चाहिये.

    और अगर हम शायद लगें रहें तो शायद इंटरनेट पर हिन्दी फल फूल सके ...

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